एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों की आत्महत्या की यह संख्या 2 साल पहले से भी 21 प्रतिशत अधिक है। 2019 में 9,613 बच्चों ने आत्महत्या की थी।आज हर रोज 31 बच्चे देश में आत्महत्या कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 महामारी से उनकी मानसिक सेहत को काफी नुकसान हुआ है। इसके दिए सदमों से ही बच्चों की आत्महत्या बढ़ीं हैं।
सांकेतिक तस्वीर - फोटो : अमर उजाला
भारत में प्रतिदिन 31 बच्चे आत्महत्या कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार साल 2020 में 18 वर्ष से छोटे 11,396 बच्चों ने अपना जीवन खत्म कर लिया। यह संख्या 2019 के मुकाबले 18 प्रतिशत अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 महामारी से उनकी मानसिक सेहत को काफी नुकसान हुआ है। इसके दिए सदमों से ही बच्चों की आत्महत्या बढ़ीं।
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार, बच्चों की आत्महत्या की यह संख्या 2 साल पहले से भी 21 प्रतिशत अधिक है। 2019 में 9,613 और 2018 में 9,413 बच्चों ने आत्महत्या की थी। यानी इन दो वर्षों में यह दुखद संख्या करीब 200 बढ़ी थीं। लेकिन 2020 के दुर्भाग्यपूर्ण समय में इससे कहीं अधिक 1,783 ज्यादा बच्चों ने अपना जीवन खत्म किया।
दो वर्षों में जहां 2.12 प्रतिशत वृद्धि हुई
इस लिहाज से इन दो वर्षों में जहां 2.12 प्रतिशत वृद्धि हुई थी, 2020 में इससे करीब आठ गुना तेज वृद्धि हुई। इस साल मरने वाले बच्चों में 5,392 लड़के और 6,004 लड़कियां हैं। लड़कियों की संख्या अधिक होने के पीछे पारिवारिक तनाव और प्रेम संबंधों में असफलता को बताया गया है।
आत्महत्या की प्रमुख वजहें
पारिवारिक समस्याएं : 4006
प्रेम संबंध : 1337
बीमारी : 1327
अन्य : कमजोर आर्थिक स्थिति, मादक पदार्थों का उपयोग, वैचारिक कारण, बेरोजगारी अन्य वजहें रहीं।
1783 यानी आठ गुना ज्यादा ने 2020 में अचानक की आत्महत्या
विशेषज्ञाें ने कहा स्कूल बंद, मन की बात वाले दोस्त दूर, बुरा असर होना ही था
बाल संरक्षण से जुड़े सेव द चिल्ड्रन संस्था के उपनिदेशक प्रभात कुमार के अनुसार महामारी में स्कूल बंद रहने और घर के बड़ों को चिंता में देखकर बच्चों का भी मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ा। परिवार में बच्चों की मानसिक देखरेख और उन्हें ज्यादा सहयोग न दे पाना भी अवसाद के बड़े काहेरण र हैं।
परिणाम
क्राय संस्था में नीतिगत रिसर्च निदेशक प्रीति महारा ने कहा महामारी का बुरा असर बच्चों पर दूसरे तरीकों से भी होगा। बच्चों ने कड़े मानसिक सदमे सहे, जिन्हें शायद हम सब समझ नहीं पाए। वे घरों में कैद थे, यह उनके कोमल मन के लिए घातक साबित हुआ।
सुधार
सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अखिला सिवादास के अनुसार बच्चों के लिए बेहतर देखभाल और काउंसलिंग का मॉडल भारत में बनाना होगा। यह उनके लिए काफी हद तक अच्छा होगा।
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मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ पोद्दार फाउंडेशन की प्रकृति पोद्दार बताती हैं कि हर बच्चा विकट हालात से अपनी तरह से जूझता है, इसी के अनुसार जरूरत होने पर उन्हें काउंसलिंग जरूर मिलनी चाहिए।